Thursday 11 July 2013



"आओ समँदर पर
उसी की बूँदे लेकर
लहरों की लिखाई सी
कोईनज़्म” लिखें
गर रात की दस्तक पर "नज़्म" सिमटे भी तो ……..
सुबह की आवाज़ पर किनारों तक बिखर जाए 
तुम नीला समँदर लेना
मैंने हरा चुन लिया है …….
तुम धूप की रोशनाई लेना ........
मैंने चाँदनी को पिरोना है ....
तुम "परिंदों" की आवाज़ें भरना .......
मैंने सितारों के बीच चलते "चाँद" के कदम नापने हैं ..........
तुम साँझ का हाथ थामना ...........
मैंने उजाले की लौ पकडनी है .........
यूँही चलते चलते ………
कहीं कहीं कर ये दो नज्मे एक हो जाएँगी
……………..शायद .......
एक दिन ..... किसी पहर पर यूँ ही ....
तुम दो कदम रुको और .........
दिन और रात एक हो जाएँ ...........
औरये” नज़्म पूरी हो जाए"......
"
मनु"